
आप बड़े हैं, परिवार के मुखिया है, माता-पिता हैं—याद रकखें कि आपकी ज़िम्मेदारी बहुत अहम् है।
यदि आप चाहते हैं कि बच्चे आप से बात करें, अपना सब कुछ share करें, तो याद रकखें पहल आपको करनी होगी——
- पहले सुनने की आदत डालें
- उनके बोलते समय बीच में interfere न करें, उन्हें कहने दें जो वो कहना चाहते हैं
- अगर वो कुछ ऐसा कह रहे हैं जो आपको पसन्द नही है-तब भी धैर्य पूर्वक सुनें और अपने expressions को ग़ुस्से में न आने दें
- जब वो अपनी बात कह लें तो धैर्य पूर्वक शांत हो कर सोचें, उस पर विचार करें और ठंडे दिमाग से उसका हल निकालें— अगर वो सही है तो खुल कर तारीफ़ करें और शाबाशी दें——और यदि ग़लत है-तो उसे समझा कर कहें ,उससे होने वाले नुक़सान को उन्हें ज़रूर समझायें— लेकिन बिना नाराज़ हुये, बिना अपनी आवाज़ को ऊँचा किय
विश्वास रकखें -हर समस्या का हल मिल जायेगा
जैसे आपको कैकटस के काँटे छूने पर चुभते हैं = वैसे ही बच्चों को आपकी नाराज़गी ,ग़ुस्सा ,तेज़ आवाज़ ,व्यंग्य और कटाक्ष की बातें चुभती हैं।
अत: सावधान रहिये— पारिवारिक रिश्तों को कैकटस (cactus)न बनने दें।
प्यार करेंगे, प्यार मिलेगा
इज़्ज़त करेंगे, इज़्ज़त मिलेगी

